जिसके विचार और चिंतन पवित्र हैं उससे अपवित्र क्रिया बन ही नहीं सकती, उससे तो विशुद्ध कर्म ही होते हैं।
सज्जन को झूठ जहर सा लगता है और दुर्जन को सच विष के सामान लगता है। वे इनसे वैसे ही दूर भागते हैं जैसे आग से पारा।
--- संतवाणी
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LS-52 / 04101001
Wednesday, September 10, 2008
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1 comment:
उपयोगी विचारों का आभार .
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