जो दूसरे को बदनाम करके नाम कमाना चाहते हैं, उनके मुँह पर ऐसी कालिख लगेगी जो मरने पर भी नहीं धुलेगी।
--- संतवाणी
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LS-52 / 04101001
Thursday, September 11, 2008
Wednesday, September 10, 2008
पवित्र विचार
जिसके विचार और चिंतन पवित्र हैं उससे अपवित्र क्रिया बन ही नहीं सकती, उससे तो विशुद्ध कर्म ही होते हैं।
सज्जन को झूठ जहर सा लगता है और दुर्जन को सच विष के सामान लगता है। वे इनसे वैसे ही दूर भागते हैं जैसे आग से पारा।
--- संतवाणी
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LS-52 / 04101001
सज्जन को झूठ जहर सा लगता है और दुर्जन को सच विष के सामान लगता है। वे इनसे वैसे ही दूर भागते हैं जैसे आग से पारा।
--- संतवाणी
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LS-52 / 04101001
शत्रुओं के गुप्त इतिहास को पढ़ें
हम जो अपने शत्रुओं के गुप्त इतिहास को पढ़ें तो हमें प्रत्येक मनुष्य जीवन में इतना दुःख और शोक भरा मिलेगा कि फिर हमारे मन में उनके प्रति जरा-सा भी शत्रुभाव नहीं रहेगा।
--- संतवाणी
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LS-52 / 04101001
--- संतवाणी
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LS-52 / 04101001
Tuesday, September 9, 2008
हीरे को मामूली पत्थर न समझें
जानकारी के अभाव में, न समझ पाने के कारण कभी-कभी लोग कीमती हीरे को भी मामूली पत्थर समझ बैठते है।
जिस चीज की या जिस बात की तुम्हें जानकारी नहीं हो उस बारे में यदि तुम्हें कोई बताए या जानकारी दे तो उसे समझने के कोशिश करनी चाहिए। बिना जाने या बिना जानकारी लिए एकदम ही उस बात को ग़लत या उसे मानने से इंकार कर देना या बिना जानकारी प्राप्त किए ही उस बात के एकदम ही विरुद्ध रहना उचित नहीं है।
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LS-52 / 04101001
जिस चीज की या जिस बात की तुम्हें जानकारी नहीं हो उस बारे में यदि तुम्हें कोई बताए या जानकारी दे तो उसे समझने के कोशिश करनी चाहिए। बिना जाने या बिना जानकारी लिए एकदम ही उस बात को ग़लत या उसे मानने से इंकार कर देना या बिना जानकारी प्राप्त किए ही उस बात के एकदम ही विरुद्ध रहना उचित नहीं है।
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LS-52 / 04101001
Monday, September 8, 2008
चश्मा कैसा हो?
जैसा चश्मा पहनोगे वैसी ही दुनियाँ दिखेगी और जैसी दुनियाँ दिखेगी उसी अनुसार तुम कार्य करोगे। और जैसा तुम करोगे उसी अनुसार कार्य का परिणाम होगा। अतः जरुरत है उचित चश्मा पहनने की, जो सही हो वह चश्मा पहनने की। यदि आप गलत चश्मा पहनते हैं तो आपको दुनियाँ भी गलत दिखेगी। और आपको दुनियाँ गलत दिखेगी तो उसी अनुसार आप कार्य करेंगे और इस प्रकार आपके गलत कार्य का परिणाम भी गलत ही होगा। और इस प्रकार उस गलत कार्य के परिणाम स्वरुप एक महान विस्फोट (की तरह) भी संभव है। अतः हमेशा सही चश्मा का ही व्यवहार करें। और सही चश्मा के लिए सच्चाई, ईमानदारी व निष्पक्षता की चश्मा की जरुरत तो है ही।
--- महेश कुमार वर्मा
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LS-52 / 04101001
Tuesday, March 25, 2008
वह बकरा ने आपको क्या किया था?
वह बकरा ने आपको क्या किया था?
कौन सा बकरा?
क्या आपको याद नही?
वही बकरा जिसे मारकर आपने अपना पेट भरा।
हाँ-हाँ याद आया, पर हुआ क्या?
हुआ यही कि होली तो प्रेम का पर्व था पर तुमने क्या किया? क्या तुमने उस बकरे के साथ प्रेम किया? बकरे के साथ तो तुम्हारा कोई प्रेम भाव नहीं था। तुम उस बेकसूर बकरे को मारकर अपना पेट भरा। ................ क्या तुम्हारी होली का पर्व तुम्हें हिंसा सिखाती है?
नहीं, ऐसा तो नहीं सिखाती। होली तो प्रेम का पर्व है।
तब फिर यह हिंसा क्यों? क्या तुम्हें यह उचित लगता है?
नहीं, उचित तो नहीं लगता है?
तब फिर इस प्रेम के पर्व होली में कितने बेकसूर बकरों व मुर्गों इत्यादि जीवों की बलि दी गयी, इसके लिए जिम्मेवार कौन है? क्या जिन्होंने माँस खाया वह इन हत्या के लिए जिम्मेवार नहीं है?
हाँ, जिम्मेवार तो वह सौ फीसदी है।
तब फिर इन बेकसूर जीवों की हत्या के विरुद्ध आवाज क्यों नहीं उठायी जानी चाहिए?
जरुर, बेकसूर जीवों के हत्या के विरुद्ध जोर-शोर से आवाज उठायी जानी चाहिए और सभी जीवों को न्याय व संरक्षण देना चाहिए।
तो आईए, आज से ही हम इन बेकसूर जीवों के हत्या के विरुद्ध अपना आन्दोलन प्रारम्भ करते हैं।
पर कैसे?
सर्वप्रथम हमें इस बात पर अमल करना होगा कि हम बेकसूर जीवों की हत्या, मत्स्य-माँस या किसी भी प्रकार का मांसाहार भोजन का सेवन नहीं करेंगे तथा न ही किसी को भी इस प्रकार के भोजन में किसी भी तरह से सहायता करेंगे।
आपने ठीक कहा।
तो आएं हम सब मिलकर मांसाहार व जीव-हत्या के विरुद्ध लड़ाई को जीतें।
http://groups.google.co.in/group/hindibhasha/browse_thread/thread/dde9e2ce361496a0
कौन सा बकरा?
क्या आपको याद नही?
वही बकरा जिसे मारकर आपने अपना पेट भरा।
हाँ-हाँ याद आया, पर हुआ क्या?
हुआ यही कि होली तो प्रेम का पर्व था पर तुमने क्या किया? क्या तुमने उस बकरे के साथ प्रेम किया? बकरे के साथ तो तुम्हारा कोई प्रेम भाव नहीं था। तुम उस बेकसूर बकरे को मारकर अपना पेट भरा। ................ क्या तुम्हारी होली का पर्व तुम्हें हिंसा सिखाती है?
नहीं, ऐसा तो नहीं सिखाती। होली तो प्रेम का पर्व है।
तब फिर यह हिंसा क्यों? क्या तुम्हें यह उचित लगता है?
नहीं, उचित तो नहीं लगता है?
तब फिर इस प्रेम के पर्व होली में कितने बेकसूर बकरों व मुर्गों इत्यादि जीवों की बलि दी गयी, इसके लिए जिम्मेवार कौन है? क्या जिन्होंने माँस खाया वह इन हत्या के लिए जिम्मेवार नहीं है?
हाँ, जिम्मेवार तो वह सौ फीसदी है।
तब फिर इन बेकसूर जीवों की हत्या के विरुद्ध आवाज क्यों नहीं उठायी जानी चाहिए?
जरुर, बेकसूर जीवों के हत्या के विरुद्ध जोर-शोर से आवाज उठायी जानी चाहिए और सभी जीवों को न्याय व संरक्षण देना चाहिए।
तो आईए, आज से ही हम इन बेकसूर जीवों के हत्या के विरुद्ध अपना आन्दोलन प्रारम्भ करते हैं।
पर कैसे?
सर्वप्रथम हमें इस बात पर अमल करना होगा कि हम बेकसूर जीवों की हत्या, मत्स्य-माँस या किसी भी प्रकार का मांसाहार भोजन का सेवन नहीं करेंगे तथा न ही किसी को भी इस प्रकार के भोजन में किसी भी तरह से सहायता करेंगे।
आपने ठीक कहा।
तो आएं हम सब मिलकर मांसाहार व जीव-हत्या के विरुद्ध लड़ाई को जीतें।
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मांसाहार भोजन : उचित या अनुचित
मंथन : विजया दशमी और मांसाहार भोजन
http://groups.google.co.in/group/hindibhasha/browse_thread/thread/dde9e2ce361496a0
Sunday, March 9, 2008
क्या यह चरित्र उचित है?
आदमी
आश्रय देने पर सिर चढ़ जाता है।
उपदेश देने पर मुड़कर बैठता है॥
आदर करने पर खुशामद समझता है।
उपकार करने पर अस्वीकार करता है॥
विश्वास करने पर हानि पहुंचाता है।
क्षमा करने पर दुर्बल समझता है॥
प्यार करने पर आघात करता है।
क्या यह चरित्र उचित है?
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