Sunday, May 30, 2010

कर्म-काण्ड के बाद क्या मृत आत्मा को शान्ति मिलती है?

किसी के मृत्यु के बाद लोग श्राद्ध, भोज, संपिन्दन, बरसी न जाने कितने कर्म-काण्ड करते हैं.  कहते हैं कि ये कर्म-काण्ड करने के बाद ही मृत आत्मा को शान्ति मिलती है.  कभी-कभी कितने लोग खुद स्वाभाविक रूप से नहीं मरते हैं बल्कि उनका सही ढंग से देख-रेख या ईलाज न हो पाने के कारण ही उनकी मृत्यु होती है.  कभी-कभी कितने लोग खुद अपने ही घर के किसी सदस्य द्वारा प्रताड़ित होकर या किसी भी तरह घर के सदस्य द्वारा ही मारे जाते हैं.  सोचें कि क्या इस स्थिति में भी कर्म-काण्ड करने के बाद उनकी आत्मा को शान्ति मिल जायेगी?  ऐसी स्थिति में तो जब वे जीवित रहते है उस स्थिति में तो घर के लोग जान-बुझकर उन्हें कष्ट देते हैं व मरते हुए छोड़ देते हैं.  क्या इस स्थिति में भी घर के लोग द्वारा कर्म-काण्ड करने से उनके आत्मा को शान्ति मिल जायेगी? 
यह कोई कोड़ी बहस नहीं है बल्कि सोचनीय मुद्दा है.  आप भी इस पर सोचें व अपना विचार दें.  इसी प्रकार की एक घटना का वर्णन मैं यहाँ किया हूँ, आप भी इसे जानें व उसपर अपना विचार अवश्य दें.  लिंक ये है: कातिल कौन?  http://apnee-baat.blogspot.com/2010/05/blog-post.html

Thursday, September 11, 2008

ऐसी कालिख जो नहीं धुलेगी

जो दूसरे को बदनाम करके नाम कमाना चाहते हैं, उनके मुँह पर ऐसी कालिख लगेगी जो मरने पर भी नहीं धुलेगी।



--- संतवाणी

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LS-52 / 04101001

Wednesday, September 10, 2008

पवित्र विचार

जिसके विचार और चिंतन पवित्र हैं उससे अपवित्र क्रिया बन ही नहीं सकती, उससे तो विशुद्ध कर्म ही होते हैं।


सज्जन को झूठ जहर सा लगता है और दुर्जन को सच विष के सामान लगता है। वे इनसे वैसे ही दूर भागते हैं जैसे आग से पारा।

--- संतवाणी

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LS-52 / 04101001

शत्रुओं के गुप्त इतिहास को पढ़ें

हम जो अपने शत्रुओं के गुप्त इतिहास को पढ़ें तो हमें प्रत्येक मनुष्य जीवन में इतना दुःख और शोक भरा मिलेगा कि फिर हमारे मन में उनके प्रति जरा-सा भी शत्रुभाव नहीं रहेगा।

--- संतवाणी

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LS-52 / 04101001

Tuesday, September 9, 2008

हीरे को मामूली पत्थर न समझें

जानकारी के अभाव में, न समझ पाने के कारण कभी-कभी लोग कीमती हीरे को भी मामूली पत्थर समझ बैठते है।

जिस चीज की या जिस बात की तुम्हें जानकारी नहीं हो उस बारे में यदि तुम्हें कोई बताए या जानकारी दे तो उसे समझने के कोशिश करनी चाहिए। बिना जाने या बिना जानकारी लिए एकदम ही उस बात को ग़लत या उसे मानने से इंकार कर देना या बिना जानकारी प्राप्त किए ही उस बात के एकदम ही विरुद्ध रहना उचित नहीं है।


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LS-52 / 04101001

Monday, September 8, 2008

चश्मा कैसा हो?

जैसा चश्मा पहनोगे वैसी ही दुनियाँ दिखेगी और जैसी दुनियाँ दिखेगी उसी अनुसार तुम कार्य करोगे। और जैसा तुम करोगे उसी अनुसार कार्य का परिणाम होगा। अतः जरुरत है उचित चश्मा पहनने की, जो सही हो वह चश्मा पहनने की। यदि आप गलत चश्मा पहनते हैं तो आपको दुनियाँ भी गलत दिखेगी। और आपको दुनियाँ गलत दिखेगी तो उसी अनुसार आप कार्य करेंगे और इस प्रकार आपके गलत कार्य का परिणाम भी गलत ही होगा। और इस प्रकार उस गलत कार्य के परिणाम स्वरुप एक महान विस्फोट (की तरह) भी संभव है। अतः हमेशा सही चश्मा का ही व्यवहार करें। और सही चश्मा के लिए सच्चाई, ईमानदारी व निष्पक्षता की चश्मा की जरुरत तो है ही।

--- महेश कुमार वर्मा
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Tuesday, March 25, 2008

वह बकरा ने आपको क्या किया था?

वह बकरा ने आपको क्या किया था?

कौन सा बकरा?

क्या आपको याद नही?
वही बकरा जिसे मारकर आपने अपना पेट भरा।

हाँ-हाँ याद आया, पर हुआ क्या?

हुआ यही कि होली तो प्रेम का पर्व था पर तुमने क्या किया? क्या तुमने उस बकरे के साथ प्रेम किया? बकरे के साथ तो तुम्हारा कोई प्रेम भाव नहीं था। तुम उस बेकसूर बकरे को मारकर अपना पेट भरा। ................ क्या तुम्हारी होली का पर्व तुम्हें हिंसा सिखाती है?

नहीं, ऐसा तो नहीं सिखाती। होली तो प्रेम का पर्व है।

तब फिर यह हिंसा क्यों? क्या तुम्हें यह उचित लगता है?

नहीं, उचित तो नहीं लगता है?

तब फिर इस प्रेम के पर्व होली में कितने बेकसूर बकरों व मुर्गों इत्यादि जीवों की बलि दी गयी, इसके लिए जिम्मेवार कौन है? क्या जिन्होंने माँस खाया वह इन हत्या के लिए जिम्मेवार नहीं है?

हाँ, जिम्मेवार तो वह सौ फीसदी है।

तब फिर इन बेकसूर जीवों की हत्या के विरुद्ध आवाज क्यों नहीं उठायी जानी चाहिए?

जरुर, बेकसूर जीवों के हत्या के विरुद्ध जोर-शोर से आवाज उठायी जानी चाहिए और सभी जीवों को न्याय व संरक्षण देना चाहिए।

तो आईए, आज से ही हम इन बेकसूर जीवों के हत्या के विरुद्ध अपना आन्दोलन प्रारम्भ करते हैं।

पर कैसे?

सर्वप्रथम हमें इस बात पर अमल करना होगा कि हम बेकसूर जीवों की हत्या, मत्स्य-माँस या किसी भी प्रकार का मांसाहार भोजन का सेवन नहीं करेंगे तथा न ही किसी को भी इस प्रकार के भोजन में किसी भी तरह से सहायता करेंगे।

आपने ठीक कहा।

तो आएं हम सब मिलकर मांसाहार व जीव-हत्या के विरुद्ध लड़ाई को जीतें।

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मांसाहार भोजन : उचित या अनुचित

मंथन : विजया दशमी और मांसाहार भोजन

शाकाहारी भोजन : शंका समाधान


http://groups.google.co.in/group/hindibhasha/browse_thread/thread/dde9e2ce361496a0

Sunday, March 9, 2008

क्या यह चरित्र उचित है?

आदमी

आश्रय देने पर सिर चढ़ जाता है।

उपदेश देने पर मुड़कर बैठता है॥

आदर करने पर खुशामद समझता है।

उपकार करने पर अस्वीकार करता है॥

विश्वास करने पर हानि पहुंचाता है।

क्षमा करने पर दुर्बल समझता है॥

प्यार करने पर आघात करता है।

क्या यह चरित्र उचित है?